मेरी कहानियाँ

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आर्टिस्ट -सुधा भार्गव ,बिना आर्टिस्ट से पूछे इस चित्र का उपयोग अकानून है।

शनिवार, 13 जून 2020

पूछो तो सच-4


तू  न जाने कहाँ से आया ! आया तो जमकर बैठ गया।  अब यह भी जल्दी से बता दे--कब जाएगा तू। 

     यही सोचती हुई शाम को बालकनी में बैठकर नीचे झांक रही थी। बगीचे में गिनती के बच्चे नजर आ रहे थे।  २-३ युवक दौड़ लगा रहे थे. मेरा कोई बुजुर्ग साथी टहलता नजर नहीं आया।  कोरोना के कारण मेरी तरह सब घर में कैद हैं।  सुनने और देखने में यही आया है कि  कोरोना बूढ़ों को देख एकदम बाज की तरह झपट्टा मारता  है। आँखें तो नीचे ही देख  रही थीं पर दिमाग इतना चंचल कि उड़ता उड़ता २० साल पहले की दुनिया में पहुँच गया।

वह वृद्धा  

     सुबह कॉलेज जाते समय एक गली से गुजर रही हूँ । वहां  एक आलीशान तिमंजलि  इमारत है ।  उसकी दूसरी मंजिल की बालकनी में एक वृद्धा  खड़ी है जो   पैरों की शिथिलता के कारण  बाहर जाने में अशक्त है  पर दूसरों से मिलने के लिए उनसे बात करने के लिए उसमें तड़पन है । बेटा नौकरी पर जाता दिखाई दिया  और बहू घर के  कामों में व्यस्त।  सो अकेलापन उसे काटने को दौड़ पड़ा है ।  वह बालकनी से बाहर हाथ निकालकर दूसरों को बुला रही है ।
एकाएक मुझे अहसास हुआ मैं वही वृद्धा हूँ --उसी की तरह लोगों से मिलना चाहती हूँ ,बातें करना चाहती हूँ पर हूँ उससे भी ज्यादा मजबूर !  पैरों में सामर्थ्यता  होते हुए भी निडर होकर निकलने में एकदम असमर्थ।

13. 6. 2020

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