गोमती बड़े शौक से अपने
बहू बेटे से मिलने भारत से लंदन गई। एक सुबह वह बड़े आराम से चाय की चुसकियाँ ले
रही थी कि बेटे की आवाज सुनाई दी-
-अरे मेरा तौलिया कहाँ है ?
-अंदर ही होगा ।
-नहीं मिल रहा ---।
-मेरे बिना तो कोई
काम ही नहीं होता । बहू बड़बड़ाई ।
-तरकीब है तुम्हें अपने
पास बुलाने की।गोमती सासू ने चुटकी ली।
-नहीं –नहीं ,बहू शर्मा गई ।
-अच्छा जाओ –मेरे बेटे से पूछो।
बहू ऊपर चली गई पर उसका काम पीछे रह गया
। अब सास का बड़बड़ाना शुरू—हे भगवान इतनी देर लग गई। मुझे भी क्या सूझी जो मैंने उसे
ऊपर भेज दिया। अब उसका काम कौन निबटाए। यहाँ नौकर तो मिलते नहीं और मुझे बर्तन
माँजने की आदत नहीं । डिश वाशर सुनते हैं अगले माह खरीदा जाएगा।हे भगवान तब तक
कैसे काम चलेगा। विदेश आए 15 दिन हो गए, अब तक तो ऐसे फालतू कामों से अपने को बचा ही रही
हूँ । वेक्यूम क्लीनर मुझे इस्तेमाल करना आता नहीं सो इस सफाई से भी बच जाती हूँ।
पर कब तक सासू जी बचतीं –--!
उस दिन बेटा थकान मिटाकर उठा ही था बहू
बोली –जरा सुन रहे हो जी ,ये तवा –कढ़ाई मुझसे साफ नहीं होते।
अंदर से सासू माँ कुलबुला उठी –सास से
काम करवाने का तरीका यह अच्छा है –बेटे के हाथ में झाड़ू या
कढ़ाई पकड़ा दो ,खटिया से लगी सास सीधी तन कर खड़ी हो जाएगी ।
अपनी बात पर फिर वह खुद ही हंस पड़ी और कमर पकड़ते हुए बोली - लो भैया,अब तो उठना ही पड़ेगा। उसके अभिनय पर बेटा भी मुस्कुरा पड़ा।
-अच्छा
बहू तुम साबुन
लगाती जाओ मैं धोती जाऊँगी। मजबूरी से उसे बोलना ही पड़ा। पर बर्तन धोने में भी नानी याद आ रही
थी।सास होकर ऐसा फालतू का काम। अपनी इज्जत भी छोटी होती नजर आ
रही थी।
एक छुट्टी के दिन बेटे ने सफाई अभियान
शुरू कर दिया। बेटे को काम करता देख गोमती को न पैरों का दर्द याद
रहा और न वहाँ की ठंड । उसका हाथ बंटाने को चल दी।
पोतियाँ भी काम में हाथ बँटाती पर दादी
का दिल जलता। मैंने इनकी उम्र में चौके झाँका तक न था और ये फूल सी बच्चियाँ –हाय
सलाद काटते –काटते कहीं अपनी उंगली न काट ले । दूसरी को तो
फुल्का भी बनाना पड़ जाता है । कहीं उंगली में छाला न पड़ जाए।
उसे अपनी जान हमेशा सूली पर लटकी
नजर आती । ज्यादा रोका-टोकी करने से बहू यदि जबाव दे तो भी बुरा और वह अकेली काम
करे तो भी गोमती अपने को अपराधिन महसूस करती। हाय राम अकेली जान हजार काम –बहू की शारीरिक काम की भी तो एक सीमा है। सब कुछ समझते हुए भी नौकरों की
आदत से मजबूर।
एक दिन कुछ भारतीय मेहमान डिनर पर आ गए ।
झूठे बर्तनों का पहाड़ लग गया। गोमती समझ गई आज तो इस पहाड़ के नीचे आए बिना वह न
रह पाएगी।
झुंझलाती बोली –नियम
होना चाहिए : आते जाओ ,खाते जाओ ,बर्तन
मलते जाओ । यहाँ के रहने वाले तो ऐसा ही करते हैं मगर इंडिया के लाटसाहबों को कैसे
समझाएँ। सोचते हैं यहाँ भी उनके बाप के नौकर बैठे हैं।
मेहमानों के जाने के बाद वह बहू का साथ
देने लगी। बहू बर्तन बहुत अच्छे से धोती और सास खाना पूर्ति करती ।
लापरवाही के कारण एक बर्तन में चावल लगे रह गए।
-मम्मी जी इन्हें पानी में
भींगने डाल दीजिए,तभी झूठन हटेगी। टोक दिया बहू रानी ने।
कहा तो उसने ठीक ही था पर सास भी
सफाई देने से बाज नहीं आई –देखो मैं कोई कुशल महरी तो हूँ
नहीं । मैं तो केवल सहायता कर रही हूँ। मीनमेख तो निकालो मत। न पसंद आए तो दुबारा
धो लो । तुम्हें यहाँ आए साल भर होने को आया। कम से कम एक साल की ट्रेनिंग तो मिल
गई है। मुझे ट्रेनिंग नहीं लेनी । मैं तो जल्दी अपने गाँव भाग जाऊँगी । बस बोलती
जा रही थी और जबर्दस्ती चेहरे पर मुस्कान भी लाने की कोशिश कर रही थी ताकि बहू
उसकी बात गंभीरता से न ले।
इत्तफाक से बर्तन धोकर उसने वहाँ
रख दिये जहां झूठे बर्तन रखे जाते थे । उसे इसका पता
भी न था । बहू ने तुरंत टोक दिया –अरे यहाँ तो झूठे बर्तन रखे जाते हैं।
तभी सासू को याद आया –
गयो-गयो री सास तेरो राज जमाने तेरी यही
बतियाँ ---।
मजे से गुनगुनाती बोली –बहू ,तुमने यह गाना सुना है –गयो –गयो
--- री सास तेरो राज जमाने
-क्या मतलब मम्मी जी--।
-इंगलिश स्कूल की पढ़ने
वाली भला तुम क्या समझोगी। पर मैं तुम्हें समझाकर ही
रहूँगी। बच्चों की तरह हंसी –ठिठोली सी करती सास
बोली।
मैं फिर से गाती हूँ ---ध्यान से सुनो।
गयो-गयो री सास तेरो राज जमाने तेरी ये
ही बतियाँ
सासु पानी भरने जाए सवेरे ,बहुअल
दे लुढ़काये
गंदों-गंदों पानी है तेरो सास जमाने तेरी
यही बतियाँ ।
सास ने गाने के बहाने बहू की ओर बहुत कुछ
सरका दिया था । पता नहीं जानकर भी अंजान बनते हुए या कम
उम्र ,दुनिया के गहरे –काले धब्बों से
अंजान, बस सास के अंदाज को देखती रही फिर उसके चेहरे पर
भोली सी मुस्कान फैल गई मानो कुछ हुआ ही न हो। वह मुस्कान सास को बड़ी भली लगी। उसमें वह नहा सी गई। आखिर थी तो उसकी बहू ही जिसे वह बड़े अरमानों से अपने बेटे के लिए पसंदकर
अपने घर लाई थी।
असल में सास –बहू का
रिश्ता बहुत प्यारा और अंतरंग सहेली जैसा है । विचारों में अंतर जरूर हो सकता है
पर दोनों के रिश्ते स्नेह व समझदारी के धागों में गूँथे हों तो मित्रों घर में सुख
ही सुख बरस पड़ता है।
समाप्त