नीला आकाश
सुधा भार्गव
भारतीय संस्कृति और परम्पराएं अपने में बड़ी अनोखी हैं।माँ -बाप जब तक सशक्त रहते हैं बच्चों की सहायता करने की कोशिश करते हैं। दिन शुरू होता है तो उनकी बातों से और रात ख़तम होती है तो उनकी यादों में। जब यही बच्चे सशक्त हो जाते हैं तो अशक्त माँ-बाप के मजबूत कंधे बन जाते हैं। कोरोना के समय भी यही हो रहा है। घर -घर बुजुर्गों का ध्यान रखा जा रहा है या जो ध्यान नहीं रखते थे वे सीख रहे हैं। दुनिया वाले इसे नहीं समझ पाते।
न जाने क्यों आज मुझे उस कनेडियन नर्स की याद आ रही है जो वर्षों पहले कनाडा में शाम को घर पर पोती को देखने स्वास्थ्य विभाग से आई थी। मैं उन दिनों ओटवा में ही थी। उसने हमारे घर आये नवजात शिशु की जांच की। नए बने माँ-बाप माँ-बाप को पालन पोषण सम्बन्धी तथ्य बताये। दो घंटे तक समस्यायों का समाधान करती रही। मैं इस व्यवस्था को देख बहुत संतुष्ट हुई । पर मुझे एक बात बहुत बुरी लगी।
नर्स ने पूछा-घर मेँ कोई सहायता करने वाला है?
"हाँ,मेरे
सास-ससुर भारत से आए है।" बहू बोली।
"कब तक रहेंगे?"
"3-4 माह तक।"
"क्या वे तुम्हारी वास्तव मेँ सहायता करते हैं?"
"सच मेँ करते हैं।"
"पूरे विश्वास से कह रही हो?"
"इसमें कोई शक की बात ही नहीं है।"
"ठीक है,तब भी शरीर
से कम और दिमाग से ज्यादा काम लो।"
नर्स शंकित हृदय से मुझसे बहुत देर तक कुछ जानने की कोशिश करती रही पर कंकड़-पत्थरों के अलावा उसके कुछ हाथ न लगा।
न जाने ये पश्चिमवासी सास –बहू के रिश्ते को तनावपूर्ण
क्यों समझते हैं?जिस माँ की बदौलत मैंने प्यारी सी
पोती पाई उसे क्यों न दिल दूँगी। इसके अलावा माँ सबको प्यारी होती है। बड़ी होने पर
जब मेरी पोती देखेगी कि मैं उसकी माँ को कितना चाहती हूँ तो वह खुद मुझे प्यार करने
लगेगी। दादी अम्मा कहकर जब वह मेरी
बाहों मेँ समाएगी तो खुशियों का असीमित सागर मेरे सीने मेँ लहरा उठेगा। शायद उस
नर्स ने कभी नीला आकाश देखा ही न था । शायद कोरोना का यह वीभत्स तांडव नृत्य उनके पारिवारिक जीवन में मिठास पैदा कर दे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें