साहित्यिकी अंतर्जाल पत्रिका में प्रकाशित
लिंक -https://sahityikee.wordpress.com/2017/11/09/anaath-se-sanaath-sudha-bha
घर को व्यवस्थित करते हुये
मुझे मिला
पीतल का एक कटोरदान
न बन सकी उसकी कद्रदान ,
पुराने फैशन का समझकर
नाक भौं सकोड़कर
पीछे सरका
दिया था
पता न था एक दिन
यही हो जाएगा
मेरे लिए वरदान।
बहुत देर तक
उसे थामे रहे हाथ
छोड़ने को तैयार न थे
उसका साथ
फिसलती उँगलियाँ
ढूँढने की कोशिश में थीं
शायद माँ के हाथों की छाप
जो तोड़ गई थी रिश्ता
बिना कहे कोई बात।
अचानक पैदा हुई एक थाप
मोहभरा संगीत भरा नाद
मोह से उपजी सिहरन
सिहरन से थी
अंग अंग में थिरकन
उसकी गूंज में मैं खो गई,
आभास हुआ
वह मेरे कंधों को छू रही
है
बालों में उँगलियाँ घूमा
रही है
आशीर्वाद की धूरी पर
मंत्र फुसफुसा रही है।
उसने बड़े प्यार से
अपने हाथों को बढ़ाया
लड्डुओं का कटोरदान
मुझे धीरे से थमाया
अल्हड़ बालिका सी
मुस्कुराकर
मैंने सीने से उसे लगाया ।
पलभर की छुअन में
मैं रम गई
एक बार फिर
अनाथ से सनाथ हो गई।
समाप्त
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