वह चाँद सा मुखड़ा
हस्तलिखित पत्रिका में प्रकाशित
कभी -कभी जीवन में ऐसा घटित होता है जो भूलते भी नहीं बनता और याद करते भी नहीं । जिसकी स्मृति खरोंच दिल को लहूलुहान कर देती है ।
हस्तलिखित पत्रिका में प्रकाशित
कभी -कभी जीवन में ऐसा घटित होता है जो भूलते भी नहीं बनता और याद करते भी नहीं । जिसकी स्मृति खरोंच दिल को लहूलुहान कर देती है ।
अनेक वर्षों पहले मेरे भाई के आँगन में दो पुत्रियों के बाद पुत्र का जन्म लेना किसी समारोह से कम न था … पहली वर्षगाँठ पर उस चाँद से टुकड़े पर अंजुली भर -भर आशीष लुटाया पर वह कम पड़ गया ।
रात का भोजन मिलकर करना परिवार का नियम था । भोजन समाप्ति पर मेरी भाभी नन्हें नकुल को कुर्सी से उतारती और हाथ मुँह धुलाने वाश वेसिन पर ले जाती …कभी स्टूल पर खड़ा करके कुल्ले कराती कभी गोदी में लेकर हाथ धुलवाती क्योंकि उसके नन्हें हाथ वाश वेसिन तक न पहुँच पाते । वह स्टूल पास ही बाथरूम में रखा रहता ,उस पर एक प्लास्टिक मग पानी लेने को रख देते थे । वहीं कोने में पानी से भरा प्लास्टिक का ड्रम होता क्योंकि पानी की कमी होने से उसे भरकर रखना जरूरी था ।
एक काली रात नकुल खाने के बाद कब -कब में कुर्सी से सरककर चला गया पति - पत्नी को पता ही नहीं चला।
काफी देर बाद होश आया --अरे नकुल कहाँ चला गया !नकुल --नकुल आवाज लगने लगीं । उसकी बहनों ने कमरे छान मारे । माँ ने बाथरूम ,शौचालय ,रसोई देखी ,उसके पापा छत की और दौड़े ,नौकरों ने पास पड़ोस में पूछना शुरू कर दिया --अजी आपने नकुल को तो नहीं देखा । परेशान उसके पापा बोले -घर में ही होगा ! वह बाहर जा ही नही सकता --जरूर शैतान पलंग के नीचे छिप गया होगा या दरवाजे के पीछे खड़ा होगा ,मैं दुबारा देखता हूँ ।
बाथरूम का दरवाजा अधखुला था और लाईट नही जली थी पर बरांडे के बल्व की रोशनी वहां पड रही थी । भाई ने नकुल को खोजते समय जैसे ही दरवाजा पूरा खोला .उसकी चीख से घर हिल उठा। सब लोग दौड़े -दौड़े आये ...देखा --ड्रम के बीच में दो अकड़े सीधे पैर !ड्रम में मुश्किल से दो बाल्टी पानी होगा । उसके बीच में था पानी से भरा मग्गा ,मग्गे में फंसा हुआ था नकुल का सिर । आँख ,नाक मुँह सब पानी में डूबे हुए थे । काफी पानी उसके शरीर में जा चुका था । पूरा शरीर अकड़कर सीधा खड़ा था ।
बाथरूम का दरवाजा अधखुला था और लाईट नही जली थी पर बरांडे के बल्व की रोशनी वहां पड रही थी । भाई ने नकुल को खोजते समय जैसे ही दरवाजा पूरा खोला .उसकी चीख से घर हिल उठा। सब लोग दौड़े -दौड़े आये ...देखा --ड्रम के बीच में दो अकड़े सीधे पैर !ड्रम में मुश्किल से दो बाल्टी पानी होगा । उसके बीच में था पानी से भरा मग्गा ,मग्गे में फंसा हुआ था नकुल का सिर । आँख ,नाक मुँह सब पानी में डूबे हुए थे । काफी पानी उसके शरीर में जा चुका था । पूरा शरीर अकड़कर सीधा खड़ा था ।
अंदाज लगाया गया -हाथ धोने नकुल बाथरूम में गया होगा । ड्रम में पानी कम होने के कारण उसने स्टूल पर खड़े होकर मग्गे से पानी झुककर लेना चाहां ,वह इतना झुक गया कि सर के बल ड्रम में जा पड़ा और नियति का ऐसा भयानक खेल --सर उसका मग में फँसा …। न वह हिलडुल सकता था न चीख -चिल्ला सकता था ।
देखने वाले सदमें से बेहोश !किसी तरह उसे निकलकर पेट से पानी निकलने की कोशिश की ,कृत्रिम सांस प्रक्रिया की । मेरा भाई डाक्टर --सब कुछ समझते हुए भी समझने का साहस खो बैठा था । कोई चमत्कार होने की आशा में चिल्लाया --किसी डाक्टर को बुलाकर तो दिखाओ और ढाढें मारकर रो उठा । डाक्टर साहब जैसे आये वैसे ही चले गए हरे- भरे घर -आँगन में वेदना की मोहर लगा कर। वर्षों तक परिवार ईश्वर के आगे सिर झुकता असाध्य कष्ट से गुजरता रहा।
देखने वाले सदमें से बेहोश !किसी तरह उसे निकलकर पेट से पानी निकलने की कोशिश की ,कृत्रिम सांस प्रक्रिया की । मेरा भाई डाक्टर --सब कुछ समझते हुए भी समझने का साहस खो बैठा था । कोई चमत्कार होने की आशा में चिल्लाया --किसी डाक्टर को बुलाकर तो दिखाओ और ढाढें मारकर रो उठा । डाक्टर साहब जैसे आये वैसे ही चले गए हरे- भरे घर -आँगन में वेदना की मोहर लगा कर। वर्षों तक परिवार ईश्वर के आगे सिर झुकता असाध्य कष्ट से गुजरता रहा।
अब भी यह घटना याद आती है तो तड़पन लाती है । अंग अंग को झकझोर देती है। पर उस प्यारे बच्चे के प्यारे चेहरे को भूलना वश में नहीं।
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