संधिपत्र/सुधा भार्गव
जंगल में मंगल |
"हा--–हा-- घबरा गए मुझे
देखकर ।
हाँ !हाँ मैं आदमखोर हूँ ।
किसे –किसे मारोगे ?कुछ दिनों पहने एक हाथी को गोली मार दी थी । परसों
एक चीते को फांसी की सजा सुना दी , और आज मुझ बाघ को कटघरे मेँ खड़ा कर दिया है।पर
यह तो बताओ –हमारा कसूर क्या है ?"
"कसूर !चार -चार मासूम
बच्चों को गटक गए और पूछते हो कसूर क्या है ?"
"अपनी भूख मिटाने ही को तो
बस्ती मेँ आना पड़ा। क्या भूख मिटाना पाप
है !तुमने तो अपनी भूख मिटाने को जंगल के जंगल काट दिये हमारा घर उजाड़ दिया ।
शाकाहारी जानवरों और दूध मुंहे पक्षियों को तुमने अपना आहार बनाकर हमारे पेट पर
लात मार दी । रहे सहे पक्षी और छोटे जानवर जंगल छोड़ दूसरी जगह जाकर बस गए।अरे
तुम जिनावर खोरों के कारण ही तो हम आदमखोर पैदा हो गए।
तुम्हारे तीन चार कम हो
गए तो बिलबिला उठे । हमारे बारे मेँ कभी सोचा ?
जंग तुमने ही छेड़ी हैं ।
जंगल मेँ न जाने कितना रक्तपात हुआ ।
हमारे अनगिनत भाई –बंधु मारे गए । कितने ही जंगलवासियों के वंश के वंश तहस नहस कर
दिये । हरी –भरी फल –फूलों से भरे वृक्ष धराशायी हो गए। हरी
मुलायम घास पर और हमारी गुफाओं पर वुलडोजर चलवाकर धरती माँ को कितना रुलाया। तुम्हारे अपराध एक हो तो गिनाएँ। हम जंगली कहलाते हैं पर तुमने जंगलीपना दिखने
मेँ कोई कसर न छोड़ी।"
"बहुत बोल लिए अब चुप लगाओ। हम जानवर ही सही पर हैं शक्तिशाली।तुममे से एक एक को चुनकर मौत के घाट उतार
देंगे । कोई नहीं बचाने आयेगा। तुम हमारा कर ही क्या लोगे ?"
"अपनी ताकत पर गुमान न करो । एक को मारोगे दस पैदा हो जाएँगे । भूल गए उन
फिरंगियों को जिन्होंने कितनी निर्दयता से हमारे देश मेँ अपना दमन चक्र चलाया था ।
पर क्या हुआ! एक क्रांतिकारी को मारते थे तो दस पैदा हो जाते थे। एक दिन ऐसा आया
कि पूरा देश क्रांति की आग मेँ जल उठा और अंग्रेजों को भारत छोडना पड़ा।अगर जंगल का राजा तुमने खुद बनना चाहा तो आदमखोर बना पूरा जंगल इस बस्ती पर छा जाएगा।
फिर तो तुम्हारा नामोनिशान भी न रहेगा । अब भी समय है चेत जाओ । जंग तुमने छेड़ी है
,तुम्हें ही इसे रोकना
होगा । वरना इस जंग मैं हम सब बर्बाद हो जाएंगे । तुम अपने घर के राजा रहो और हमें अपने जंगल का राजा रहने दो । हम भी खुश
तुम भी खुश।"
बस्ती के रहने वालों मेँ शेर की बातों ने दहशत फैला दी।
वे सोचने पर मजबूर हो गए ।
किनारे पर किशोरों की एक
टोली थी जिसमें ज़्यादातर आठवीं -नवीं के छात्र थे । वे जानते और समझते थे कि किस तरह से मनुष्य अपने मतलब के लिए जंगल और
पशु –पक्षियों का दुश्मन बन बैठा है। उनकी
सहानुभूति शेर के साथ थी । छोटे होने के कारण वे बड़ों के सामने बोलने
नहीं पाते थे । लेकिन अब वे अपनी चुप्पी
तोड़े बिना न रहे ।
मुखिया का लड़का आगे बढ़कर
अपने पिता से बोला –"बप्पा जी ,शेर राजा ठीक ही कह रहे हैं । सब अपनी –अपनी सीमा
मेँ रहें तो शांति और सुख दोनों बने रहते हैं । आप दोनों संधि कर लीजिये ।"
"बेटा ,कह
तो तू ठीक ही रहा है ।"
"तब लीजिए यह संधि पत्र और
कर दीजिए अपने –अपने हस्ताक्षर । इसमें लिखा है --जंगल और बस्ती हमेशा एक दूसरे की
सुविधा का ध्यान रखेंगे ।"
मुखिया ने हस्ताक्षर कर
दिये और शेर राजा ने अपना पंजे की भारी
भरकम छाप लगा दी । उस दिन से आज तक न कोई उस जंगल मेँ शिकार करने जाता है और न ही पेड़ को धड़ से अलग करवाता है । सुना है वह जंगल बड़ा घना व विराट हो गया है । ऊंचे
ऊंचे पत्तों से ढके पेड़ों को देख बादलों का मन चलायमान हो उठता है और वे इतना
बरसते हैं –इतना बरसते हैं कि जंगल मेँ मंगल हो जाता है
बैंगलोर
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